ओ श्रद्धा जी मैं बोल रही हूं
पैतीस टुकड़ो में कटी लाश से,
ओ श्रद्धा जी मैं बोल रही हूं।
पहले कछू समझ ना आया,
आज आंख मैं खोल रही हूं।।
आफताब को समझ श्याम,
मैं उसकी श्यामा बन बैठी।
मात पिता सबको ठुकरा,
मन मरजी से खुद ऐठी।।
पर आफताब हाथो से कट,
ओ पूरे देश में डोल रही हूं।
पहले कछू समझ ना आया,
आज आख मैं खोल रही हूं।।
पैंतीस ••••••
ओ जानू जानू जिसको कह,
मैं जान से जादा मानी थी।
आज वही जान को ले बैठा,
हकीकत में यह नादानी थी।।
बड़ा बुरा परिणाम हुआ,
अब सच्चाई को तोल रही हूं।
पहले कछू समझ ना आया,
आज आख मैं खोल रही हूं।।
पैंतीस •••••
मात पिता मिल सब समझाए,
पर बात किसी की ना मानी।
रिश्ता नाता तोड़ सभी से,
ओ की थी मैनें मनमानी।।
पहले बातें जहर लगी थी,
पर आज मैं मिश्री घोल रही हूं।
पहले कछू समझ ना आया,
आज मैं आंखे खोल रही हूं।।
पैंतीस •••••
मुझको तो अपनी करनी का,
दुष्परिणाम तो मिल चुका।
पापा की परियां सीख बचो,
कुअंजाम कभी ना रूका।।
ऐसी घटनाओं का तो मैं,
खुद ब खुद एक रोल रही हूं।
पहले कछू समझ ना आया,
आज मैं आंखे खोल रही हूं।।
पैतीस••••••
कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष
मिर्जापुर
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