ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

राष्ट्र धरा आह्लादित ,बाल मन सुरभि स्पंदन से-महेन्द्र कुमार

राष्ट्र धरा आह्लादित ,बाल मन सुरभि स्पंदन से
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हर्ष आनंद जीवन पर्याय,
अंतर स्नेह अविरल धार ।
अपनत्व अथाह सींचन,
उरस्थ स्वप्निल मूर्त आकार ।
मान सम्मान मर्यादा सीख,
धर्म कर्म नैतिकता वंदन  से ।
राष्ट्र धरा आह्लादित,बाल मन सुरभि स्पंदन से ।।

अग्र कदम चाल ढाल बिंब,
परिवार समाज शुभ्र भविष्य ।
विलोपन नैराश्य तमस मूल,
समाधान प्रश्न उत्तर संशय ।
आत्म विश्वास मुख निखार,
शिक्षा दीक्षा मृदुल मंडन से ।
राष्ट्र धरा आह्लादित,बाल मन सुरभि स्पंदन से ।।

सृजन अनंत नव अवसर,
दिव्य प्रतिभा चरम बिंदु ।
प्रेरणा पुंज संपूर्ण परिवेश,
सदाचार सहयोग भाव सिंधु ।
चिंतन मानवता ओतप्रोत,
विमुक्ति जाति पांति क्रंदन से ।
राष्ट्र धरा आह्लादित, बाल मन सुरभि स्पंदन से ।।

नैतिक कर्तव्य अधिकार बोध,
पर्यावरण संचेतना अनिवार्य ।
आशा उमंग उल्लास साहस,
आदर्श चरित्र निर्माण आचार्य ।
दर्शन मनप्रीत अठखेलियां,
निज संस्कृति संस्कार अभिनंदन से ।
राष्ट्र धरा आह्लादित,बाल मन सुरभि स्पंदन से ।।

महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)

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