ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।
अंधेरा छट जाये नभ,जल और धरित्री का, 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

स्नेहिल गंगा अहम् की पर्वत शिलाओं से निकल जाए, 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

भटकाव ना किसी की जिन्दगी में आए, 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

सत्यवादी हवा जल;थल, आकाश में फैल जाए, 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।

अमीरों के रोशनदान नहीं, गरीब अपनी कुटिया सजाए ,
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

पटाखों से नहीं, राम-आगमन की खुशी में दीप झिलमिलाए, 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

स्वास्थ्य के लिए हो सुदृढ़, वायु प्रदूषण ना फैलाए, 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

कोना-कोना घर-आंगन प्रेम रस की मिठास से सजाए,
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ।

आओ इस बार दिवाली कुछ ऐसे मनाएं
हम हर्षित हों,तुम भी हर्षित रहो और ये जग हरषाएं ।

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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