ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

रेत सी फिसलती जिन्दगी-कमलेश कुमार कारुष मिर्जापुर

रेत सी फिसलती जिन्दगी

ओ रेत सम फिसलती जिन्दगी, 
आ मुठ्ठियों में तुझे भींचलूं।
मधुर स्मृतियों के खजाने सजों,
एक तस्वीर सम खीचलूं।।
क्या सही क्या गलत है जहां में,
ओ  तूने  मुझे  सिखाया।
यूं सत्य के राह पर चलना सदा,
बस आगे बढ़न दिखाया।।
समता  ममता  एकता  से भरी,
निभाना  है  मुझे  बंदगी।
ओ सम्भल के चलना कारुष, 
ए रेत फिसलती जिन्दगी।।
कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष 
मिर्जापुर

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