शीर्षक। दर्द आभूषण बने है
स्नेह अतिरेक में अश्रु झर-झर गिरे है
दिल के दर्द आभूषण
बने है,,,,,,
खारे मनसमुद्र मोती गालो पे ढुलक रहे है
कोरों से पलकों के दर्द
देखो आभूषण बने है,,,,,
अनिश्चितता के क्षण में
अनहोनी गुजर के गई
गूंज उनकी खिलखिला
के दर्द आभूषण बने है,,,
दुर्दिनों की दुर्दशा दुर्घटना
घटित हो गई बनके पराये हृद्यशूल चुभते
दर्द आभूषण बने है,,,,,,
सहजरूप रहना मुश्किल
उथल-पुथल छाई हुई है
चक्षु अश्रुपूरित हुए है
दर्द आभूषण बने है,,,,,,,
अनामिका
लेखिका शिक्षिका सम्पादिका
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