बाद उसके ही शायरी आई
गर्दिशो में गुजरती गई जिंदगीठोकरों से रफ्तगी आई
रुख पर उसके बेरुखी आई
कह रहे थे बहार लायेंगेलिपट कर खिजां चली आई
बांट रहे थे बरकत के ताबीज़
बांधते ही मुफलिसी आई
जी रहे हैं अठारहवीं सदी मेंक्या करे इक्कीसवीं सदी आई
आए क्या वो महफ़िल में"सरल"
हर तरफ सिफ्लगी चली आई
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव,यूपी
0 Comments