शीर्षक:-क्यूँ नहीं?
किस्मत की ओढ़नी ओढ़ाया क्यूँ नहीं?
मैं जिन्दा हूँ फिर जिन्दा बताया क्यूँ नहीं?
कोख तेरी, खून पानी तेरा, शरीर भी तेरे जैसा,
तेरा मन भयभीत है; मुझे त्रसित बनाया क्यूँ नहीं?
तू तो मार खाकर जीती रही हमेशा,
'नारी शक्ति है' मुझे सिखाया; खुद को बताया क्यूँ नहीं?
लड़कर सारी दुनिया से, क्यूँ जन्म दिया छिपकर,
कितने दिनों तक छुपाकर रखोगी?
कभी दिखाया क्यूँ नहीं?
आज सशक्त नारी आन्दोलन कर रहीं,
जंग बहुत पहले से करवाया क्यूँ नहीं?
ना जाने कितनी शक्ति मर रही आज भी कोख में!
तू खुद शक्तिमान है तो शक्ति दिखाती क्यूँ नहीं?
माता-पिता दोनों की ही कमियाँ रहीं हैं कुछ-कुछ,
अन्याय से स्वयं की रक्षा में स्वयं को सबल बनाया क्यूँ नहीं?
माँ शब्द में सारी दुनिया आ जाती है,
फिर बाहरी दुनियाँ के नियम को ताक पर चढ़ाया क्यूँ नहीं??
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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