ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

नया मोड़-नौशाबा जिलानी सुरिया

........नया मोड़......
आंखों में बसी है नमी  खुदा
क्यों हो रही हु मैं खुदसे जुदा

 चाहती हूं कोई दिल से लगाए 
हो रही हूं खुद मे ही जैसे गुमसुदा 

अजीब सा डर है दिल में समाया हुआ
बोझ जिम्मेदारियों का भी आया हुआ

रोने लगी हैं आंखें अब बहुत
बस बदल रही है अब ज़िंदगी बहुत 

फिजा भी छूकर बेचैन कर जाती हैं
तारो से गुफ्तगू  मे भी आंखें रुलाती हैं

वे  भी जिम्मेदारी के नियम बताती हैं
अंधकार मे भी होना रोशन सिखाती हैं

बातों को सुन हंसी सी छूट जाती है
ऐसे मे केवल बाबुल की याद आती है

ऐ खुदा ! है अजीब मोड़ यह भी ज़िंदगी का
बस ,तेरी रहमत है तेरी बंदगी का
.................................
नौशाबा जिलानी सुरिया

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