चुभता है आंखों में जो हसीं नजारा था कभी
है जान का दुश्मन जो बहुत प्यारा था कभी
करवट बदलता है वक़्त तो आहट नहीं होती
डूब जाता है बुलंदी पर जो सितारा था कभी
कौन मिलता है फिर पलटकर माजी से अपने
पले है उसके भी घर कुत्ते जो बेचारा था कभी
बहुत रंजुर है लख्ते जिगर के हाल पर वो भी
कमाई से जिसकी घर का गुजारा था कभी
चला रहे हुकूमत जो पीर ओ फकीर आजकल
दस्तगीर थे इनका दूर का नजारा था कभी
बेकारी ले आई उन्हें समन्दर के किनारे"सरल"
कुएं का पानी भी लगता जिन्हें खारा था कभीl
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव, यूपी
माजी : भूतकाल
रंजूर : दुखी
लख्ते जिगर : औलाद
पीर : धर्म गुरु
दस्तगीर : मदद करने वाला
0 Comments