ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

प्रभु संग प्रीति - प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-प्रभु संग प्रीति 
आज रात जागरण में बीती,
कैसे सुनाऊं सखी आप बीती? 
नैन मदमस्त कजरारी अलसाई, 
छुड़ाये ना छूटत लगी जो प्रीती। 

महक रहा है मेरा तन-मन, 
मादकता फैली है घर-आंगन,
अरोमा से कैसे,निकलूं सखी रीती,
रोम-रोम पुलकित कलिका सरीखी। 

दिल का स्पंदन शिथिल न होवे,
स्मरण प्रिय का विस्मृत ना होवे ,
छिड़ गई जो प्रेम की बात सखी रीति ,
शर्म और घबराहट की स्थिति करीबी ।

प्रत्यक्ष हूँ पर अप्रत्यक्ष सी जानो, 
पूरी रास सुनाऊं तुम हंसी ना मानो, 
कन्हैया साँवरिया बड़ा सताता है सखी रीति,
ना जाने क्या देखता टकटकी मुझपर लगा बारीकी! 

आँखो की कालिमा हुई धूमिल, 
अधर की मनोरथ रदच्छद से मिल, 
छवि जो आज कान्हा का सीने लगाया सखी रीति, 
'प्रति' प्रेमिका बन प्रेमी के साथ प्रेम में बनी मदमाती ।

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" 
चेन्नई

Post a Comment

0 Comments