ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

बचपन की शरारत

*धूल धूसरित काया*

ओ कितनों मना करें उसको,
यूं धूल धूसरित खेलता खेल।
लोट पोट बस  हंसता  रहता,
कर  देता  है  सबको  फेल।।

ओ हाथों से मिट्टी सान सान,
यूं चेहरे पर  लेप  लगाता  है।
जब  भी  कोई  उसे  रोकता,
बस जोर  जोर चिल्लाता  है।।

ये बचपन के  पल  मनमानी,
खेल   अजीब    निराले   हैं।
धूल धूसरित  बदन  मनोरम,
बच्चे    मन    मतवाले    हैं।।

कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष 
मिर्जापुर

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