ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

अवध का भाग्य


आज अवध का भाग्य जगा है 
ये दिन आने में कई जन्म लगा है
ये जो आने वाला कल है 
पिछले जनम के पुण्य का फल है 

चल कर स्वयं ही धाम आ रहें हैं 
राम आ रहें मेरे राम आ रहें हैं

अब सबरी की प्रतीक्षा टूटेगी
हर श्राप से अब अहिल्या छुटेगी
जो भी विराध बन बैठा है 
हर उस अधर्मी की बाहे कटेगी


अब सुग्रीव की ना रूमा लूटेगी 
अब विश्वामित्र की ना यज्ञ टूटेगी
अब खुशहाली का सुरज उगेगा 
अब दुःख की हर बदली छटेगी

अब अच्छे सुबह ओ शाम आ रहें हैं 
राम आ रहे मेरे राम आ रहे हैं


राघवेन्द्र मिश्र

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