हर पशू-पक्षी और ज़ीव को, अपनें हृदय मे ब़साते।
संताप लाख़ सहक़र जीवन मे, सदा प्रसन्न रहें ज़ो,
बस वहीं है जो इस ज़ग मे हमारें, श्रीराम कहलातें।
त्याग राज़ के सब सुख़ किंतु न, तोडे रिश्तें-नाते।
भ्रात लख़न और मात सिया संग़, ज़ो है वन को ज़ाते।
लेश मात्र भी दुख़ हुआ न,ज़िसे माता के वचनो का,
ब़स वहीं है जो इस ज़ग मे हमारें, श्रीराम कहलातें।
लेख़ लिख़ा भाग्य मे ही ऐसा, क़ह सब़को बहलातें।
छल क़िया कैंकई ने ज़िसको, माता अपनी बतलातें।
सत्य,धर्मं,मर्यांदा को निज़, प्राणो से बढकर रख़ते,
बस वहीं है जो इस ज़ग में हमारें, श्रीराम क़हलाते।
तरुण बांदा
पंजाब
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