सोशल मीडिया का जूनून।
कितना खुश हो जाता हूं, चंद लाइक पोस्ट पर पाकर के।
बार बार देखता रहता हूं, मोबाइल फोन उठाकर के।।
कोई इधर से कोई उधर से, शब्दों का होता है जोड़।
कभी गीत तो कभी कविता, डाल देता हूं बनाकर के।।
जिनको जानता नहीं शक्ल से, वो ही प्यारे हो गये।
उनकी पोस्ट पढ़ता हूं, कभी चाहकर कभी ना चाहकर के।।
किसी पर गुस्सा आता है, किसी पर आ जाता है प्यार।
जुट जाता हूं कुछ लिखने, आंखों पे चश्मा लगाकर के।।
घर वाले भी मना करते करते, हो गये हैं खुब परेशान।
मैं हूं कि मानता नहीं, देखता रिजाई में मुंह छिपाकर के।।
जब भी घटती है कोई घटना, या होता है कोई त्यौहार।
दिल से निकले शब्दों को , लिख देता घुमा फिराकर के।।
वहम का इलाज नहीं कोई, ये भी तो एक वहम है।
राजेंद्र सिंह ने रोग पाल लिया, बुढ़ापे में आकर के।।
राजेंद्र सिंह श्योराण।
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