ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

जीवन रेखा

जीवन रेखा
किसी ने लिखने को दिया, विषय था "जीवनरेखा"।
स्वयं के संग बैठा, फिर अंतस में देखा।
जीवन कोरा कागज सा है। 
समय, समय समय पर देता है एक कलम, कागज़ पर रेखा खींचने को। 
कागज धरती पर आने और आसमां में जाने तक है। 
जीवन रेखा एक से नही बनती, कुछ आते है इसे बनाने समय आने पर। 
सबसे पहले मेरी माता
धरती पर वही विधाता। 

मुझे धरती पर लाने और स्वयं आसमां जाने तक वही मेरी जीवनरेखा है। 
अब तारा बन मुझे चमका रही है। 
 एक अच्छी कविता लिखी जा रही है।
पिता तो सदैव ही खिंचते है खामोशी से लकीर। 
बच्चों के जीवन चित्र की दिखे उजली तस्वीर।। 

इस रेखा को बढा़ने मे एक सहभागिनी है। 
बच्चों की माँ है,मेरी अर्धांगिनी है।। 
माँ शारदे और कलम तो कभी से मेरी जीवन रेखा रही है। 
हर मंच से जोरदार रचनाएँ कही है।। 
एक छोर से बढ़ रही रेखा,  वो छोर भी आने वाला है। 
जीवन‌ है एक कोरा कागज एक दिन ये जल जाना है।। 

© आलोक अजनबी
रोहतक (हरियाणा)

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