ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

जरा सोच तो लें-प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )

जरा सोच तो लें…..


दुनिया आपको इसलिए याद नहीं करती कि आपके पास बड़ा धन है अपितु इसलिए याद करती है कि आपके पास बड़ा मन है और आप सिर्फ अर्जन नहीं करते आवश्यकता पड़ने पर विसर्जन भी करते हैं । चिंतनीय बात है धन का संचय आपके मूल्य को घटा देता है और धन का सदुपयोग आपके मूल्य और यश को बढ़ा देता है ।धन से जितना आप चाहें, सुख के साधनों को अर्जित करें । बाकी बचे धन को सृजन कार्यों में, सद्कार्यों में, अच्छे कार्यों में लगाएं । संसार में सबसे ज्यादा दुखी, मनुष्य परिग्रह से है। मालूम होते हुए भी साथ में कुछ भी नहीं जाएगा। मुट्ठी बांधे आए हैं, हाथ पसारे जाएंगे फिर भी हम जोड़ने में लगे रहते हैं । जोड़ने के साथ विसर्जन करें तो हमारा जीवन सार्थक होगा नहीं तो बिना विसर्जन के सारा अर्जन व जीवन निरर्थक है। हम अर्जन जरूर करें परन्तु साथ में भगवान महावीर की तरह ऐसे त्यागें कि हमारा जीवन सुखमय हो जाए। त्याग कर्मों के बोझ को कम करता है, इसलिए हमारे अंदर अर्जन के साथ विसर्जन का साहस होना जरूरी है। हमारी संस्कृति में व्यक्ति को विनम्र रहना सिखाया जाता है।अपनी प्रशंसा होने पर सकुचाने का पाठ पढ़ाया जाता है। पर आज आधुनिकीकरण की दौड़ में यह संस्कृति लुप्त हो रही है और अपनी प्रशंसा पर गर्व  करना माडर्न होने की निशानी मानी जा रही है। यह बात यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि स्व-प्रशंसा की प्रवृति भी बढती जा रही है। धीरे - धीरे यह आत्म-मुग्धता में परिवर्तित होती जाती है। वर्तमान में हमारे मनोवैज्ञानिक इसे मानसिक विकृति मानते हैं। ऐसे लोग स्व में ही केन्द्रित रहने लगते हैं।स्वयं को सबसे ऊपर और सर्वोत्तम समझने लगते हैं। अपनी प्रशंसा के अलावा वे और कुछ नहीं सुनना चाहते। दूसरे की चढ़ती सुन कर तो वो भड़क उठते हैं। उनका दृढ़ विचार होता है कि वे कभी गलत हो ही नहीं सकते। वही है सबसे ताकतवर और नाज है उसे अपनी ताकत पर तो जरा पूछें उससे क्या वह अपनी अर्थी भी खुद उठा सकता है , है वह इतना ताकतवर?    

           
प्रदीप छाजेड़ 
( बोरावड़ )

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