पढलंँ,ना तजलं पर हरि क ध्यानी।
आसुरी ज्ञान सोहाइल नहिं उनके,
ना धरलं मनआसुरी ज्ञान विज्ञानी।।अजी हाँ..
वैदिक पाठ पढावें संगी साथी के,
हरि के भजवावें, करिके नादानी।
सब लरिकन के प्रहलाद सुधारहिं,
शुचि रुचि उत्तम कथानी बखानी।।अजी हाँ..
लखि सब लरिकन प्रहलाद बिगारे,
भइलन उ असुर कुल क अवसानी।
राजहि आज्ञा से प्रताडित उ भइलं,
पर रुकल ना उनकर करनी धरनी।।अजी हाँ..
सुनि असुरराज अतिशय ही कोपल,
फइलइलस आ कुटिल बुद्धि शैतानी।
गोदी में जाके अपने बूआ के बइठ्अ,
ओढलिन होलिका चद्दर-वरदानी।।अजी हाँ..
अब हरिजी ही तोहिके आई बचइहं,
उ छल कइलस आपन आग लगानी।
होलिका क दहन त टटकहि हो गइल,
प्रहलादहिं नारायण क कृपा बचानी।।अजी हाँ..
असुरराज गरजल चिल्लाइल दुःखसे,
लख निज भगनी क्षति परान गवानी।
अंतिम अवसर हम इ देत हईं तोहके,
बुला प्रभु के अब तूँ,आवें उ रक्षानी।।अजी हाँ..
उ हरि त व्यापक हंँ हर जगहीं,
जल थल नभ आ खंभ समानी।
गदा प्रहार खंभ पे जा कइलस,
प्रभु खंभ फाड़ भइलं प्रगटानी।।अजी हाँ..
जंघा धरि प्रभु नख से भेदन कइलं,
पेट फाडि करि ओहकर तिजहरनी।
हरि चिघाँड़न सब कम्पित हो गइलं,
उछलल सागर अरु डोलल धरनी।।अजी हाँ..
प्रहलाद जब प्रभु स्तुति कइलन,
रूद्र रूप छोड़लन नर-सिंहानी।
शांत प्रभु भइलन गोदी लेहलन,
देहलँ अमर पद,प्रभु अवगांनी।।अजी हाँ..
इ पर्व तबहिं से होवत बा आइल,
गावत सबहीं मिल चैता-फगुनी।
रंग गुलाल लगावत मन भावनि,
ना भुलिहँ होली में गले लगानी।।अजी हाँ..
नरसिंह बनी रउरे जन सबहीं,
रखि प्रभु चरनन मन - ध्यानी।
हतभागी असुर आतंकी मारीं,
हित राष्टृ धर्म,भू के कल्यानी।।अजी हाँ..
✍️चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा"अकिंचन"
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