#दिनांक:-20/6/2024
#शीर्षक:-जताने लगते हो।
अनदेखे किरदार के हकदार हैं हम,
जिम्मेदारियों के मजबूत दीवार हैं हम।
आँसुओं में तो रोज डुबकी लगाते हैं,
हर दर्द पीकर मुस्कुराने वाली नार हैं हम।
जीवन साथी के लिए जीवन खर्च करते हैं,
अपमानित होकर भी अकड़ कर चलते हैं,
दिमाग से हम कहाँ कभी बुद्धिमान हुए,
तभी तो हर लड़ाई का आगाज करते हैं।
तूफानों में भी खामोशी का दीपक जलाए रहती,
गम के दलील को कोर्ट कचहरी से बचाए रखती।
मेरे हिस्से की हिसाब वाली किताब सबमें बंटती,
धोखेबाज हो, जानकार भी विनम्रता बनाए रखती ।
हमेशा मन मारना हम औरतों को पड़ता है,
हसीन दिखे सपनों का गला घोटना पड़ता है ।
कभी हकदार ही नहीं हुए अपनी जिन्दगी के हम,
आधी बाप-भाई और पति-बच्चों में खपाना पड़ता है।
क्या मांगती हूँ मैं तुमसे, तुमसे, तुमसे...??
थोड़ा सम्मान, थोड़ा प्रेम, सिर्फ तुम से...,
आँसू अंगारे बन रोज विरोध करते हैं मुझसे,
पर पी जाया करती मैं, होश सम्भाला है जब से।
छोड़कर परिवार अपना तेरे साथ आती हूँ,
ऊपर से तेरे साथ को भी तरस जाती हूँ।
खड़े यदि एक पल के लिए तुम हो जाते,
पुनः विश्वास कर तुम पर बिखर जाती हूँ।
पर इस बिखराहट का मोल लगाने लगते हो,
मैं पराई हूँ फिर- फिर जताने लगते हो।
ना जाने कितने टुकड़े करोगे अरमानों के,
सदियों से अपनापन दिखा हँसी उड़ाकर ठगते हो ।
(स्वरचित, मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित है)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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