आध्यात्मिक प्रेम
प्रेम वो नहीं, जो शब्दों में कह जाए,
वो तो एक अनुभूति है, जो दिल में रह जाए।
न चंदन की मूरत, न कोई आहट,
ये प्रेम तो आत्मा का है, हर पल की चाहत।
जिसमें न कोई स्वार्थ, न कोई सीमा हो,
बस प्रेम की ज्योत, हर हृदय में सजीव हो।
ये मिलन नहीं देह का, ये आत्मा का संगम है,
जहाँ प्रेम में डूबकर ही मिलता परम सत्य है।
हर सांस में उसकी आराधना हो,
हर धड़कन में बस उसकी साधना हो।
प्रेम का ये सफर है अंतहीन,
जहाँ प्रेमी और प्रेम, दोनों हो एक अदृश्य धारा में विलीन।
वो प्रेम जो बांधता नहीं, पर आज़ाद करता है,
जो संसार से हटकर, आत्मा को शांति देता है।
ये प्रेम नहीं सिर्फ साथ का, ये आत्मा की पुकार है,
जिसमें है हर बंधन से परे, प्रभु का आभार है।
ये प्रेम है ध्यान का, आत्मा का प्रकाश,
जो जोड़ता है हमें ईश्वर से, वो अनंत विश्वास।
आध्यात्मिक प्रेम का ये पवित्र एहसास,
हर जीवन को बनाता है अद्वितीय और खास।
जहाँ कोई दूरी नहीं, कोई अलगाव नहीं,
बस एक शाश्वत प्रेम है, जिसमें कोई भेदभाव नहीं।
ये प्रेम हमें जीवन की असली राह दिखाता है,
और आत्मा को अपने असली घर तक ले जाता है।
अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
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