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गुजरी यादें- अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी

गुरुकुल अखण्ड भारत
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Sundays and holidays come as a boon for us. Sometimes, he neither knows day nor night, I feels like eating, drinking, sleeping, getting up, sitting, leaving everything aside to write or do something. 
 
                           (Thoughts myself)

गुजरी यादें

गुजरे वक्त की परछाई, दिल में बस जाती है,  
हर एक लम्हा, हर एक बात, मन को छू जाती है।  
वो हंसी के फुहार, वो बचपन की ठिठोली,  
अब भी आँखों में चमक, पर दिल में है थोड़ी ख़ाली।  

कभी किसी शाम की हवा, वो खुशबू लेकर आती,  
पुरानी यादों की धुंधली तस्वीरें दिल को फिर से जगाती।  
वो साथी, वो गलियाँ, जहां छोड़े थे कदम अपने,  
आज भी जैसे वो वक्त, दिल के कोने में बसे हैं सपने।  

तन्हा रातों में जब चाँद मुस्कुराता है,  
दिल में कुछ पुरानी धड़कन फिर से जगाता है।  
वो बीते हुए लम्हे, जैसे कल की ही बातें हों,  
उनकी मिठास में आज भी, खामोशी की रातें हों।  

कभी आँसुओं में, कभी मुस्कानों में,  
गुजरी यादें बसी हैं इन पुराने अफसानों में।  
दिल चाहे फिर से लौट जाए उसी राह पर,  
जहाँ वो लम्हे, वो यादें फिर से हों साथ भर।  

गुजरी यादें हैं धरोहर, दिल की एक पुकार,  
वो पल जो बीत गए, फिर लौटें नहीं दोबारा।  
पर उनकी खुशबू, उनकी छाप,  
रहेगी हमेशा दिल के पास,  
जैसे वक्त की दरिया में तैरता एक खास एहसास।  

अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
पीलीभीत, उoप्रo

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