जहाँ देखती हूँ..
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जहाँ भी देखती हूँ,
अलग ही नज़ारे दिखते हैं |
इस रंग बदलती दुनिया में,
दुर्बल पर बार सब करते हैं |
हो हृदय में स्नेह भरा जिसके,
घृणा का पात्र वही क्यों बनता है?
हृदय पवित्र रहे जिनके,
वही वेदना क्यों सहता है?
झूठे लोगों की जीत यहाँ,
सत्य दबाया जाता है |
चाहे जितना पाप करे कोई,
देवता बन पूजा जाता है |
फूल मिलना चाहिए जिसको,
कंटक भेंट किया जाता है |
सच्चे हृदय का मोल नहीं,
जीते जी मारा जाता है |
वाह रे ये कैसी नगरी भगवन,
अच्छे लोग सताये जाते हैं |
राह चले जो तेरे पथ पर,
वही लोग गिराए क्यों जाते हैं ?
✍️
कंचन मिश्रा
शाहजहाँपुर, उ. प्र.
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