कैसे करें विश्वास प्रीत की बातों पर,
जब दिल ही डरता है हर मुलाकातों पर।
वो हंसी जो चेहरे पर खिली रहती है,
क्या वो सच में दिल की आवाज़ होती है?
आजकल प्यार में भी छुपे हैं छलावे,
हर रिश्ते में जैसे बस फरेब के घाव हैं।
कहते हैं प्यार सच्चा होता है,
पर फिर क्यों टूटते दिल के दावे हैं?
वचन जो कभी दिल से दिए थे,
वो अब बस शब्द बनकर रह गए।
आँखों में सच्चाई की जगह,
अब तो धोखे के साए आ गए।
कैसे यकीन करें उस दिल पर,
जो पल में बदल जाता है।
कल तक जो अपना था यहाँ,
वो आज अजनबी बन जाता है।
पर फिर भी दिल चाहता है,
कहीं न कहीं सच्चाई हो।
किसी की प्रीत में वो मिठास हो,
जहाँ विश्वास की गहराई हो।
अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
पूरनपुर पीलीभीत उत्तर प्रदेश
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