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न जाने यह ग्रहण कब हटेगा..

गुरुकुल अखण्ड भारत
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 न जाने यह ग्रहण कब हटेगा.. 
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कुछ मूड,
अजीब सा लगता है,
जैसे भार हो जीवन मे,
महसूस होता है |

कोई पूछे हाल चाल,
भले कुछ पल,
लेकिन जिंदगी तभी अच्छी,
जब सब कुछ स्थायी होता है|

आज तो कंचन पर ग्रहण लगा ,
न जाने कब ग्रहण हटेगा |
जीवन के अंधेरे को,
कौन सा सूरज,
कब छलेगा।
हिम्मत के सहारे बीत रही है,
जिम्मेदारियो में उलझी हूँ |
मझधार में मेरी नाव पड़ी,
किनारे होने को तरसी हूँ |

बेटे बेटी कुछ हो जाये,
तभी तो कुछ हल्का होगा,
तभी जीवन से ग्रहण हटेगा |
जीवन तभी चमकेगा,
फिर भी बहुत कुछ अधूरा होगा |
जो चला गया, 
यदि वह मिल जाये तो,
यह जी

वन जीवन होगा।

ऊपर वाले के सहारे बीत रही,
उसी को जीवन सौंप दिया |
जो जीवन दे दिया उसने,
उसको ही जीवन मान लिया।
✍️
कंचन मिश्रा
शाहजहाँपुर, उ. प्र.

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