असत्य पर सत्य की विजय,
हो चहुंओर सदा ही जय जय ।
इंसानों में भेड़िए को पहचानो,
अहम के रावण को तो मारो।
हर शहर गली घर में रावण रहता,
देखो रिश्तों की आड़ में छुपा बैठा।
स्त्रियों की इज्ज़त पर करता प्रहार,
रौंदता मिट्टी में मिला करता तार-तार।
कब तक अबला बन गुहार लगाते,
यही सही वक्त है चलो शस्त्र उठाके।
रावण तो मर चुका सदियों पहले,
बेटीयों की चीख ना कोई घर दहले।
कलयुग के रावण को जलाएंगे,
गुनहगारों को सजा दिलाएंगे।
इस तरह विजयदशमी मनाएंगे,
बुराई पर अच्छाई को जिताएंगे।
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कृतिका "कृति"
कानपुर उत्तर प्रदेश