ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

जिन्दगी-कंचन मिश्रा

जिन्दगी.. 
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राहे जिंदगी में.. 
बस चलना ही होता रहा,
बचपन तो बीता,
खुशियो के साथ,
लेकिन आगे सब कुछ,
कठिन होता रहा।
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मुस्कुराने की उम्र में,
आंसू गिरते रहे मेरे,
और अपना ही दुख देता रहा,
अपने और 
अपनेपन की खायी में,
मैं हर रोज पिसती रही,
लेकिन किसी को भी,
मेरी मुस्कुराहट से,
वास्ता न रहा।
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अपनो ने ही एहसान,
लाद दिए मुझ पर,
अपने घर मे ही,
ऋण कर दिए मुझपर,
उन्हें अपना सुख,
मेरे गम में ही दिखता रहा।
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बच्चों की बेबसी,
मुझे मजबूर कर जाती है,
बस दिन कटता और,
रात बीत जाती है,
उन्ही के सहारे,
अपनी उम्मीदों को,
पंख लगाकर बैठी हूँ,
वरना तो इस जिंदगी में,
रिश्ता केवल शब्द,
और कुछ न रहा।
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कितनी कंचन,
इसी अंधेरे में गुम हो जाती है,
अपनो की उपेक्षा से,
दुःख को ही,
जिंदगी समझती जाती है,
मेरी खुशियां भी,
लोगो के गम से,
बढ़कर रहा।


✍️कंचन मिश्रा
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