ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

इंतजार-अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी पूरनपुर पीलीभीत उoप्रo


इंतजार

इंतजार भी जैसे रसायन की प्रक्रिया हो,  
धीमे-धीमे घुलता, समय में जो ठहरता हो।  
प्रतिक्रिया का इंतजार जैसे कोई बंध टूटे,  
और नए अणुओं में कोई संबंध जुड़े।

दिल में उमड़ती है आशाओं की गैस,  
पर बर्ताव शिथिल, जैसे हो निष्क्रिय गैस।  
प्रेम का तापमान बढ़ता जाता है,  
इंतजार में जैसे उबलता कोई द्रव बन जाता है।

इलेक्ट्रॉन की तरह वो घूमते हैं पास,  
पर परमाणु से दूरी अब भी खास।  
बंधन का गठन होता नहीं,  
फिर भी आकर्षण घटता नहीं।

विलयन में घुले हों जैसे दो तत्व,  
मगर संतुलन बिंदु पे आकर ठहर गए।  
कोई उत्प्रेरक आएगा शायद,  
जो इस मिलन को गति दे जाए।

इंतजार में भी एक ऊर्जा छुपी है,  
जो रासायनिक बंधों से बँधी है।  
मिलन की प्रतिक्रिया जब होगी पूरी,  
तो प्रेम की ऊर्जा होगी पूरी तरह से मुक्त।

अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
पूरनपुर पीलीभीत उoप्रo


Post a Comment

0 Comments