माँ दुर्गा का चौथा रूप
जय माँ कुष्मांडा
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जब चारों ओर अंधेरा था।
न कुछ दिखायी पड़ता था।
दशों दिशाओं में अंधकार भरा था।
अंधेरों में डर लगता था।
तब माँ कुष्मांडा ने जन्म लिया।
दशों दिशाओं को प्रकाश से भर दिया।
अपनी मंद - मंद मुस्कान से,
सबको अलौकिक कर दिया।
ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली।
सबका अंधकार मिटाने वाली।
सूर्यलोक में रहने वाली,
रोगमुक्त करने वाली।
घोर तिमिर को दूर कर,
तुम यशस्वनीम् कहलायीं।
अष्ट भुजाओं के कारण तुम,
अष्टभुजा कहलायीं।
माँ दुर्गा का चौथा रूप हो माँ।
तुम ही जगत जननी हो,
श्रष्टि का उद्धार तुम्ही से है,
सबके संकट हर लेती हो माँ।
✍️
कंचन मिश्रा
शाहजहाँपुर (उ. प्र.)