ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

वैदिक विचार व कर्म

🚩वैदिक विचार व कर्म


  ॐ नाम निज प्रणव प्रभू का और नाम सब गुण अनुशंसी।
ब्रह्मा विष्णु महेश एक हैं,कर्ता,धर्ता,हर्ता त्रिभुवन प्रशंसी।। 
दृष्टि पलक का उठना गिरना,दृश्य अदृश्य का दृग संयोजन। 
अरणी में है अग्नि अगोचर,गोचर होता पा कर्म- नियोजन।।

वह निराकार अनुभूति परक है,अजर,अमर है और अजन्मा। 
कल्पभेद से सृष्टि का सर्जक,वही प्रहर्ता औ' स्वाम्भुव जन्मा।।      
अणु के अन्दर,अणु के बाहर,व्याप्त वही,अति सुक्ष्म, विभ्राट। 
अखिल सृष्टि साम्राज्य है उसका,सर्वेश्वर वह अविकल सम्राट।। 

राम कृष्ण अप्रतिम दिव्यात्म थे,उस निराकार के रचना साकार। 
कर्म विपाक से जीव अक्षर यह,है बन के शरीरी लेता आकार ।। 
ईश्वर जीव प्रकृति अविनाशी, जीव है मोहरा प्रकृति विसात। 
कर्म विपाकी क्रीडा करवाता, कर लेता पुनि आत्मसात।। 

 चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन", 
गोरखपुर, 

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