ऋतु बदली न दिन बदले
न बदले हैं परिधान रे!
धूमधाम है शहर गांव में
गीले पड़े मचान रे!
आने वाले आओ न तुम
मिलकर खुशी मनाएंगे,
तुम क्या हम तो कुटिलों
को भी मन से गले लगाएंगे।
लाउडस्पीकर पर गाने सुन
बहरे कर दें कान रे!
भाव भरो मन में तुम सुदृढ़
पथ की यही पुकार हो,
धूप -छांव सा जीवन है ये
ठहरे नहीं विचार लो।
कर्मठता से कर्म करो
है नये साल का गान रे!
तैराकी तुमको आती
घबराते न बरसात से,
नैया पार करोगे कैसे
कागज की तुम नाव से |
आओ सीखें पुरखों से कुछ
बढ़े मान सम्मान रे!
धूमधाम है शहर गांव में
गीले पड़े मचान रे!
© पिंकी अरविन्द प्रजापति ✍️
सिधौली सीतापुर उत्तर प्रदेश