ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

महर्षि दयानन्द-12-चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

🚩महर्षि दयानन्द-12

वैदुष्यपूर्ण टीका को करते, 
          तंत्र मंत्र के कलुषित कर्मा। 
शव साधना श्मसान भूमि में, 
          वामाचारी कहते, साधक धर्मा।।

"वेदान्त भ्रांति निवारण"औ'
         "वेद विरुद्ध मत खण्डन"विमोचन।
सं0उन्नीस सौ इकतीस विक्रमी,
           दोनों ग्रन्थों का हुआ प्रकाशन।।

विधर्मियों का मान बिन्दु था, 
             जन्दावस्ता व इंजिल कुरान। 
अपकीर्ति का वहन कर रहे, 
            देशज ग्रन्थ व ज्ञान- पुराण।।

संवत् उन्नीस सौ बत्तीस में, 
          अद्भुत ग्रन्थ "सत्यार्थ प्रकाश"।
विवेक और सुतर्क प्रभाकर, 
           उदयाचल से आया आकाश।।

सान अस्सी के पावन तिथी में, 
         "परोपकारिणी सभा"सृजित की।    
मानवता का मान बिन्दु बन, 
        "उत्तराधिकारिणी सभा"गठित की।।

मणि-माला में रत्न पिरोया, 
        लाकर त्यागी और बलिदानी का ।
विद्वानों का सुन्दर पंक्ति सजाया, 
         राष्ट्र -धर्म के अतिअभिमानी का।।

"सद् धर्म प्रचारक"पत्र दिया जो, 
         शुद्धि -मंत्र का था वह उद्गाता ।
श्रद्धानन्द था वह बलिदानी,
          आर्य जनों का भाग्य विधाता।।

वेद-निष्ठ थे ,लेखराम भी,
           दयानन्द के थे जीवनी लेखक। 
उत्कर्ष किये निज प्राणों का, 
           थे वेद धर्म के जन उपदेशक।।

शान्ति प्रकृति के राजपाल थे, 
           क्रान्ति मन्त्र के थे वे उद्बोधक। 
प्राण दिये वे बलिवेदी पर ,
          "रंगीला रसूल "के थे प्रकाशक।।

आर्य जगत के अद्भुत लेखक, 
           स्वामी वेदानन्द जी तीर्थ महान। 
बहुभाषा के विज्ञ -शिरोमणि, 
            थे वेदों के, वे अद्भुत विद्वान।।

क्रमशः13
✍️चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

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