ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

नयना2-चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

2->नयना

    खिलत,मिलत,बोलत,हरिसत हँ, 
    रिझत, खिझत,नटियात हँ नयना।
    आँख चुरावत लजियात हँ नयना, 
    भाव भंगिमा, रस टपकत नयना।।

तिक्षन, कटीली, उन्मादी नयना,
भावहीन, उदासी,उन्नीदी नयना।
विडलाझी,मीनाझी,रक्तिम नयना, 
चंचल, चितवन,चुलबुल नयना।।

      नील झील जस गहरी नयना ,
      कलश,सुधाकर,मृदुली नयना।
      सीपी सम्पुट मोती जस नयना, 
      सावन भादो बन बरसे नयना।।

मुस्काये इ फुलबतिया जइसन,
खिललफूल जस बिहसें नयना।
सिकुड़े सिमटे लजवंती नयना,
कबहू मुरिझाये इ चूअल नयना।।

      दूध कटोरिया,कजरारी नयना, 
      घुघुची जइसन रतनारी नयना।
      विष बुझल कटारी मारे नयना , 
      सोमरस पान करावें इ नयना।।

अंगुरी के जबि कटिहंँ इ नयना ,
काजर कइसे परवइहंँ इ नयना।
दियवा के जइसन बाटंँ इ नयना ,
परवाना अइहँ देखिहँ जब नयना।।

      मछरी जइसन तैरेलँ इ नयना, 
      कवियन के हरसावेलँ नयना।
      चितवन भी हँ इ अजब मदारी, 
     बहुतहि कर्तब दिखलावें नयना।।

पश्य कराके,सगरो जगती के, 
पश्यन्ती कहलावें इ नयना। 
लोचक अरु अवलोचक कहिहँ, 
न इति न इति हउयँ इ नयना।।

 🌈 चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

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