ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

नयना-1-चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

नयना
नयनन में भी चंचल बानी हⵢ,                                            रसिकन सन चपल रवानी हⵢ ।
कबहुं ठुमकि रहि,बइठंँ इ नयना ,                                          कबहूँ उठिहंँ,नचिहं लाखानी हँⵢ ⵏ।
        नयना मिलि दुई,चार जब होलंँ, 
        होला मनवांँ हलचल,भूचाली हंँⵢ।
        सागर के लहरन जइसन इ उछरें, 
        हिया हिलोरें नयना,लासानी हंँⵢⵏ।
सुखवा दुखवा अति झरिहंँ नयना, 
रगरा झगरा बिन लड़िहंँ इ नयना ।
गलती केहू कर, घहिरावें केहू पर ,
दिल चोटिल कर,तड़िपावें नयना।। 
          कबहूँ बनिहंँ बैरागी, इ नयना, 
          कबहूँ होइहंँ अनुरागी,नयना।
          कबहूँ नटिहंँ सनकरिहंँ नयना,
          कबहूँ नटिनी बनिजइहंँ नयना।।
कबहूँ अगनी बरसइहंँ नयना,
कबहूँ अगनी उपजइहंँ नयना। 
सूरज जइसन तेजस हँ नयना , 
चन्दा जइसन शीतल हँ नयना।। 
          भौंहन धनुहीं संँधावे इ नयना, 
          हनि हनि बान चलावें नयना।
          बैरिन बनि हरिहँ,इ प्रानन के, 
          रहि रहि घात लगावें नयना।। 
धनवंतरी बनि जइहँ नयना, 
पयघट पान करइहँ नयना।
सोमसुरा छलकइहँ इ नयना, 
छलिया बनि छलकरिहँ नयना।। 
         कमल पँखुरी जइसन इ नयना, 
         भंवरा शयन करवावें इ नयना। 
         मदभरी रसीली रसवंती नयना, 
          कामुक रूप लुभावें इ नयना।। 

(क्रमशः-2)
✍️चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

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