ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

बचपन - सखी लखनऊ, उत्तर प्रदेश


बचपन ही बीता हो जिसका अनाथों जैसा,
क्या ही फर्क पड़ता है कोई साथ हो न हो।

अपनों का ही बर्ताव हो जब गैरों जैसा,
क्या ही फर्क पड़ता है कोई अपना हो न हो।

हर दर्द, तकलीफ में जब पोछे हैं आंसू खुद से,
 गिर कर भी खुद उठेंगे कोई सहारा हो न हो।

ठोकरें भी खाईं है खूब, चलना सीखा है जब से,
मुस्कुराते हैं फिर भी कोई खुशी हो न हो।

क्यों सिखाई गई इंसानियत जब सब कुछ है यहां पैसा,
ऊंचा है सर बुराई का अच्छाईयां अब हो न हो।

रूठा है आज मन संसार के न्यायाधीश से,
आज हमारे आंसुओं का हिसाब करो, सह रहे अन्याय कब से,‌
अब न्याय करो क्यों मौन हो?
~सखी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश


Post a Comment

0 Comments