शीर्षक:-लक्ष्य प्राप्ति का जुनून
हर एक किरदार के कुनबे में ,
लक्ष्य हौसला दिलाती काव्य लिखने में ,
साहित्य का ह्दय प्रेम है दोस्तो ,
तो खुद को क्यूँ रोकना प्रेम से प्रेम करने में ।
जब आघात लगे दिल को ,
ना रोक पाऊँ खुद को भिगोने में ,
सहज लगता हर किसी को दूसरे का दर्द,
आसान हो जाता घाव को और कुदेरने में ।
संयोग से ज्यादा वियोग का योग करते हैं सब ,
कुण्ठित भावना के बिस्तर पर सोते हैं सब ,
दर्द अथाह, पर झेलने का तरीका पूछते,
गम, सितम विधिवत में दुख उपजे दूसरो में,
ऐसा हवन कराते हैं सब ।
तब उत्पादन होता आह! का,
तब निकलती चीख चीत्कार-सी ,
कलमबंद रही थी जो हमेशा से कलम,
अब लिखने को आतुर विह्वल हो गई उफान-सी ।
एक बार उठ गई कलम, फिर कभी नहीं रूकती,
अनवरत विकास पर चलती रहती ,
लक्ष्य प्राप्ति का जुनूनी कफ़न बांध ,
सारे मामलो को अपने में लपेट चोट करती रहती |
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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