ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

लक्ष्य प्राप्ति का जुनून -प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-लक्ष्य प्राप्ति का जुनून 
हर एक किरदार के कुनबे में ,
लक्ष्य हौसला दिलाती काव्य लिखने में ,
साहित्य का ह्दय प्रेम है दोस्तो ,
तो खुद को क्यूँ रोकना प्रेम से प्रेम करने में ।

जब आघात लगे दिल को ,
ना रोक पाऊँ खुद को भिगोने में ,
सहज लगता हर किसी को दूसरे का दर्द,
आसान हो जाता घाव को और कुदेरने में ।

संयोग से ज्यादा वियोग का योग करते हैं सब ,
कुण्ठित भावना के बिस्तर पर सोते हैं सब ,
दर्द अथाह,  पर झेलने का तरीका पूछते,
गम, सितम विधिवत में दुख उपजे दूसरो में,
ऐसा हवन कराते हैं सब ।

तब उत्पादन होता आह! का,
तब निकलती चीख चीत्कार-सी ,
कलमबंद रही थी जो हमेशा से कलम, 
अब लिखने को आतुर विह्वल हो गई उफान-सी ।

 एक बार उठ गई कलम, फिर कभी नहीं रूकती, 
अनवरत विकास पर चलती रहती ,
लक्ष्य प्राप्ति का जुनूनी कफ़न बांध ,
सारे मामलो को अपने में लपेट चोट करती रहती |

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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