ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

परस्परता में हो सद्भाव-प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )

परस्परता में हो सद्भाव
हम समाज में रहते है इसमें रहने का हमे आनन्द तभी मिलेगा जब हम किसी के भी सुख दुख में सदैव सद्भावना रखे । सभी चाहते हैं कि हम आत्म निर्भर बने।किसी दूसरे पर आश्रित ना रहें।पर यह मुमकिन नहीं है।चाहे व्यक्ति हो या समाज और चाहे देश।हर किसी को एक दूसरे की ज़रूरत होती है। एक जमाना था एक बाप के कई बेटों का भरा पूरा परिवार होता था।परिवार के सभी सदस्य आपस में प्रेम से रहते।चाहे परिवार में ख़ुशियाँ हो या ग़म सभी एक साथ जुड़े होने से ख़ुशियाँ बढ़ जाती और दुःख हल्का हो जाता हैं । समाज मे एक दूसरे का उपग्रह अपेक्षित होता ही है।स्वावलम्बन और परावलम्बन की बात एक सीमा तक ठीक है।स्वावलम्बन का संदेश अतिरिक्त आलस्य,प्रमाद न आये उस दृष्टि से ठीक है।लेकिन मानव सब कुछ अकेला नहीं कर सकता , सहयोग लेना और देना दोनो जरूरी है। जंहा जुड़ाव है वंहा ख़ुशियाँ भी है और शक्ति भी।जो इंसान अपनो से जुड़ कर नहीं रहता उसका भी वो ही हाल होता है जैसे पेड़ से टूटा एक पता।एक समय आता है कि बिना जुड़ाव वाले व्यक्ति को अंतिम समय कंधा देने चार लोग भी शामिल नहीं होते। इसलिए चाहे व्यक्ति हो,या चाहे समाज और चाहे हो कोई देश।जंहा परस्पर जुड़ाव है उसके पास शक्ति है,प्रेम है और मुसीबत में आशा की किरण।इसलिए परस्पर जुड़ाव रखिये और जीवन को आनंदित बनाइये। ऐसा होने से स्वतः ही होगा सबसे प्रेम भाव का अपना व्यवहार और सबमें पनपेगा परस्परता में सद्भाव।
प्रदीप छाजेड़ 
( बोरावड़ )

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