ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

राघव प्रसाद विश्वकर्मा "राघव"


सुन्दरी सबइया
8 सगण +1 गुरु= 25 वर्ण × 4
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परिगा जबते हइ बोट सुना,
      चउराहन   का   टरिगा   हुरदंगा।
सलगे दहपोंग अछंन  भएं,
     घर आंगन मा  नहिं  नाचइँ  नंगा।
नहिं पूंछत कोउ भुलाइ हमैं,
     अब ताकि रहें कुरसी भिखमंगा।
कनफार कपार न खाइ रहें,
     भल 'राघव' पूर  नहाइन   गंगा।।
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जन  सेवक  पूर  अलोप  भए,
     तरई जस  भोर  ह्यराइगिं  नेता।
बस खोलि बिकास पुरान खुबै,
     सबहीं भरिपेट  सुनाइगिं  नेता।
ररुआ खुरुआ नहिं कोउ बचा,
     सबका सिरमंत बनाइगिं नेता।
अबतौ कुछु आपन काम करा,
     महिना भर भात खबाइगिं नेता।।
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राघव प्रसाद विश्वकर्मा "राघव"

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