ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

सुसंस्कारों की सुगंधि से, जीवन उपवन महकता रहे - महेन्द्र कुमार

सुसंस्कारों की सुगंधि से, जीवन उपवन महकता रहे 
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शिक्षा ज्ञान सहज अवबोध ,
प्रयोग व्यवहार धरातल ।
निर्माण आदर्श चरित्र,
भविष्य सदा उज्ज्वल ।
आत्मसात कर नूतनता,
पुरात्तन भाव चहकता रहे ।
सुसंस्कारों की सुगंधि से, जीवन उपवन महकता रहे ।।

मान सम्मान मर्यादा ज्योत,
अपनत्व अप्रतिम प्रसरण ।
तन मन आरोग्य विहार,
अपार उमंग संचरण ।
मृदुल विमल स्नेहिल स्वर,
पाषाण उर पिघलता रहे ।
सुसंस्कारों की सुगंधि से,जीवन उपवन महकता रहे ।।

चिंतन मनन सोच विचार,
सकारात्मकता नित श्रृंगार ।
अविचलक संघर्ष पथ पर,
बन प्रेरक ओजस्वी उद्गार ।
समता समानता अनूप चित्र,
राष्ट्र धरा रूप चमकता रहे ।
सुसंस्कारों की सुगंधि से,जीवन उपवन महकता रहे ।।

निर्वहन सामाजिक सरोकार,
हिय वास निज संस्कृति ।
तिलांजलि संकीर्ण दृष्टिकोण,
वंदित समग्र  विकास आकृति ।
मात पिता वरिष्ठ वृंद सेवा धर्म ,
प्रेरणा पुंज बन दहकता रहे ।
सुसंस्कारों की सुगंधि से,जीवन उपवन महकता रहे ।।

                              महेन्द्र कुमार
                      (स्वरचित मौलिक रचना)

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