ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

प्रणय के अभिलाष में

प्रणय के अभिलाष में
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अलौकिकता अथाह दर्शन,
उरस्थ पुनीत कामनाएं ।
आशा उमंग उल्लास प्रवाह,
चितवन मृदु विमल भावनाएं ।
प्रति आहट माधुर्य स्वर,
जीवन प्रभा सम कनक ।
प्रणय के अभिलाष में,हर कदम चमक दमक ।।

हर पल प्रियेसी संग,
मिलन हेतु सौम्य तत्पर ।
मुस्कान वसित भव्य छवि,
अनंत अंध विश्वास परस्पर ।
चाल ढाल परिधान अनूप,
मोहक हृदय स्वरिका खनक ।
प्रणय के अभिलाष में,हर कदम चमक दमक ।।

परिवेश बयार आनंदिका,
नैसर्गिक दृश्य मनमोहक ।
संसर्ग विचार पीठिका,
सृजन सृष्टि सदैव रोहक ।
अंतर बिंदु कमनीय स्पर्श,
हाव भाव सौरभ जनक।
प्रणय के अभिलाष में,हर कदम चमक दमक ।।

सप्त जन्म सहगम अनुबंध,
रग रग दैविक आभा व्याप्त ।
आह्लाद जीवन सुपर्याय भाषा,
सर्वत्र खुशियां विलुप्त संताप ।
राधा कृष्णमय अतरंग तरंग,
विभूति व्यवहार चिंतन सनक ।
प्रणय के अभिलाष में,हर कदम चमक दमक ।।

महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)

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