ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

फिर परदा क्यूँ है?

शीर्षक :-फिर परदा क्यूँ है?
मसला ये नहीं कि किसको कितना है? 
मामला प्रेम का है। 
करीब सब हैं, हम बिस्तर पर, 
दिल का विस्तार कहाँ है ?
खोज सबको एक अजीज की है! 
फिर वो कौन जो करीब है? ।
बेधड़क बातें, हर कोई करना चाहता है ,
फिर परदा क्यूँ है?
कोई क्यूँ नहीं संतुष्ट यहाँ? 
तेरी ऐसी लीला, प्रभु क्यूँ है? ।
जिस्म से रूह तक जाने की बात,
एक बार नहीं, चाहे बार-बार मुलाकात, 
फिर गमगीन दौर का शुभ कदम,
करता आघात !
एकाकार नहीं, एकाकी बनते हालात !!
किसी को कहीं सुकुन से, क्यूँ मुलाकात नहीं ?
खुलते जज्बात बातों से बात नहीं...,
घुटन का कम्बल ओढ़कर डर रहा, 
अंधेरे दिल में घना अंधियारा और बढ़ रहा, 
क्या करे 'प्रति' कितने बिखरों को संवारे,
संवारने में प्रेम का, ना हो जाए ठहराव रे।
प्यार एक जिम्मेदारी है ,
जिसका भार तकदीर वालो के कंधों पर रहता है !
बात अलग है कंधा बहुत कम, 
नसीब वालों के पास होता है....|


प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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