मौत को जिंदगी के करीब देखा।
राजपथ पर मैने इक गरीब देखा। साथ में छोटी बहन सूरत से भली चंगी है।।
उपर नहीं है एक कपड़ा भी, व्यवस्था शायद नीचे तक नंगी है।।
बिन कपड़ों के बालक के हाथ में है आधी अधूरी रोटी, शायद कोई पकवान।
नहीं चेहरे पर थकान, होंठों पर मुस्कान।।
विकासशील भारत ही तो भूखा है नग्न है।
दिल्ली ,अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा में मग्न है।।
हे राम!अब तुम अपना राज चलाना ।
भारत की व्यवस्था को अपनी अयोध्या सी बनाना।
जहां कोई न रहे निर्वस्त्र सबको मिले रोटी।
होठों पर रहे सभी के इक सच्ची मुस्कान।
हे राम! बनेगा ना !मेरा भारत महान।।
© आलोक अजनबी
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