जय माँ स्कंदा,
माँ का पांचवां रूप
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माँ दुर्गा का पाचवाँ रूप हो माँ।
जगतजननी, शांति, पवित्रता व सकारात्मकता का प्रतीक हो माँ।
पुत्र कर्तिकेय के स्कंद नाम से तुम स्कंदा कहलायीं,
अति प्रेम वात्सल्य के कारण माँ,
तुम मातेस्वरी कहलायीं।
आपसे प्रशिक्षित होकर,
पुत्र कर्तिकय ने,
तारकासुर को है मारा।
कर युद्ध में,
वध राक्षसों का,
सब जीवों को,
है संवारा।
शिक्षा देने के कारण,
तुम बुद्धिदेवी कहलायीं ।
मन को पवित्र करने वाली माँ,
श्वेतवर्णा कहलायीं।
जो अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण माँ के,
योगक्षेम का निर्वहन है करता।
कर स्तुति माँ के चरणों में,
दुखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ है करता।
जो जन, एकाग्रभाव, पवित्र मन से,
करें माँ की आराधना।
जीवन को सफल बनाकर उसके,
पूरी करती मनोकामना।
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कंचन मिश्रा
शाहजहाँपुर, उ. प्र.
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