मैं मम्मी की गुड़िया थी..
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मैं मम्मी की गुड़िया थी..
मम्मी ही मेरी दुनिया थी,
उनका आँचल ही,
मेरा ठिकाना था,
उनका प्यार मेरे लिए,
मनमाना था,
वह मेरी बातें समझती थी,
मैं उन्हें ही जिंदगी कहती थी,
घर मे सबसे छोटी थी,
लेकिन,जिंदगी ही
शायद,मेरी खोटी थी,
मेरे सामने ही,
मां साथ छोड़ गई,
मेरे लिए,
मुसीबतों की राह खुल गयी,
जो सपने थे, वह सपने ही रह गए,
जीवन की खुशियां,
आंसू में बदल गए।
पढ़ाई लिखाई दम तोड़ती रही,
मैं बेबस, बस देखती रही,
मुझे जल्द ही बेगाना कर दिया,
आगे के जीवन के लिए,
जीवन साथी के पास,
भेज दिया गया।
वहां के सफर में ,
चलना ही मुश्किल था,
तथाकथित अपनो में,
शायद ही कोई अपना था।
उनका स्वास्थ्य, संघर्ष,
सब साथ चलता रहा,
उनका भी साथ छूट गया,
बस मेरा मन रोता रहा।
अब तो बस यादों का सहारा,
जिंदगी बहुत उलझ सी गयी,
अपने ही घर मे,
मैं पराए सी रह रही है।
बच्चों ने सपने दिखलाए,
उन्ही के लिए जीती हूँ,
मम्मी वाले प्यार के सहारे,
मुस्कुराने का प्रयास करती हूँ,
आंसुओ को ही खुशियां समझ,
खुद को खोजती रहती हूँ,
मम्मी की लाडली,
अब जिम्मेदार बन चुकी,
जिम्मेदारी में उलझी रहती हूँ।
✍️
कंचन मिश्रा
शाहजहाँपुर, उ. प्र.
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