सुख क्या?..
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जनम हुआ तो मिठाइयाँ बटे,
मृत्यु समय पकवान बनै |
ऐसे सुख का क्या करें,
जो हृदय हित न होए |
जोड़ - जोड़ तिनके को,
बन गया राजभवन |
नाना प्रकार हैं सुख यहाँ,
फिर क्यों हृदय है बेचैन ?
अपना तेरा जग भया,
दर्द सताय तो होवें अति दूर |
सेवा निंदक की करी,
प्रहार करत भरपूर |
✍️
कंचन मिश्रा
शाहजहाँपुर
(उ. प्र.)