ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

स्वामी दयानन्द-2-चन्द्रगुप्त वर्मा अकिंचन

🚩स्वामी दयानन्द-2

चोर,हीन,निकृष्ट व काफि़र,पर्यायी ,  
       "हिन्दू"कहकर सब उपहास कर रहे।                                                      
यवन,ईसाई,संयुत धर्मांतरण कर रहे, 
       आर्य नर,नारी उनके थे ग्रास बन रहे।। 
गीत- गड़ेरिया वे वेदों को थे कहते, 
      आर्षग्रंथों को मिथ्या,कपोल व कल्पित। 
वे क्षेपक मंत्रों की भी रचना करके,
       करते मिश्रित,दूषित और कलंकित।। 
वो सन् अट्ठारह सौ चौबिस के, 
      फरवरी मास के,द्वादस का था पल।
ले आया शिव शंकर को धरा पे, 
        पीने को, फिर वह गरल हलाहल।। 
शंखद् ध्वनि हुआ,टंकारा ग्राम में, 
       पुलकित करता शिव घोष हुआ। 
काठियावाड़ की मोरवी भूमि में, 
       विरुदावली से जय घोष हुआ ।। 
गुजरात धरा भी धन्य हुयी , 
      जिसका कण कण है बलिहारी। 
बंथनमुक्त कराने भारत माँ को, 
      था आया युग का वो अवतारी ।। 
अम्बिका सरीखी थी मातृ अमृता, 
     पितुथे कृष्णतिवारी(वा)अम्बाशंकर। 
"शंकर"रूप है साक्षात्,ये जातक, 
        नाम रखा पुनि "मूल"है "शंकर"।।
लेन देन,जमींदारी से ही सब कुछ,
         हो रहा जीविका वृत्ति प्रबन्धन। 
आकाशवृत्ति, मधुकरी से संचय, 
        कुलजन पर था कभी ना बन्धन।।
वेदानुगामी सामवेद का,औदिच्य, 
      व्राह्मण कुल में था जो उत्पन्न हुआ। 
शास्त्र विहित,सब विधि-विधान से, 
     फिर शिक्षा-दीक्षा सब सम्पन्न हुआ।।
धर्मशास्त्र के श्लोक सूत्र सब, 
      बचपन में ही मेधावी ने कंठस्थ किया।
अष्टम् वर्ष,यज्ञोपवीत धारण कर,
       गायत्री संध्या सब अभ्यस्त किया।। 
शब्द रूपावली व व्याकरण ग्रंथ, 
       संग यजुर्वेद को भी परिपूर्ण किया।
संहिता सहित, कुछ वेद ज्ञान भी, 
       चौदहवें वर्ष तक सम्पूर्ण किया।। 
                                       
                                             ✍️क्रमशः3
चन्द्रगुप्त वर्मा अकिंचन 

Post a Comment

0 Comments